समुद्र मंथन
समुद्र मंथन
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रात
जब मस्तिष्क
अपने आंतरिक कक्ष में
प्रवेश कर रहा था
सुरमई जुगनू
अंधेरों को रौशन कर रहे थे
खामोशी अंधेरों को पी रही थी
अंधेरों के कतरे बिखर रहे थे
सांसों का बाज़ार नर्म था
कुछ आयातित कुछ अपहृत सांसें
बेसुकून से उनींदी सी
हर करवट पर कराह रही थीं
इक समुद्र मंथन होने लगा
चेतन, अवचेतन, अतिचेतन सांसें
पूरी गरिमा के साथ धरने पर बैठ गयीं
विस्मृतियों की धूल धुंधलाने लगी
सांसें किसी का एकाधिकार न होने की
विडम्बना से मचलने लगीं
चौदह घड़ी, चौदह पल, चौदह विपल
बीत गए
एक धनवंतरी की तलाश में
पर हाय
सांसों के हाथ आया हलाहल
मस्तिष्क के आंतरिक कक्ष की दहलीज़ पर
ठिठक कर ठहर गया
एक आघात, एक पक्षाघात
और हृदयाघात की आहट
और हो गया
सांसों का अवसान।
