"स्कूल का लंच।"
"स्कूल का लंच।"
उम्र के हर पड़ाव से अच्छे थे वो बचपन के दिन,
आज बहुत याद आते है वो बचपन के दिन।
वो दोस्तों के साथ नाश्ता बाट के खाना,
वो छुट्टी के समय दोस्तों के साथ खेलना।
ना कोई फिक्र थी ना कोई टेंशन था,
कितना अच्छा वो बेफिक्र जमाना था।
फिक्र नहीं थी कुछ कमाने की,
फिक्र नहीं थी कुछ गवाने की।
दोस्तों के साथ साइकिल चलाने की,
वो कागज की कश्ती बारिश के पानी में चलाने की।
कोई पराठा लाता तो कोई गुड घी लाता था
साथ बैठ के खाने का कितना मजा आता था।
अब तो वो दिन, जैसे सुनहरी यादें बन गई,
जैसे कोई सुंदर सलोनी कहानी बन गई।