सिर्फ सोचने से कुछ न होगा
सिर्फ सोचने से कुछ न होगा
सोचने भर से कुछ नहीं होगा कि....
सब भला करेंगे अपने सृजनहार !
उपर जो बैठा हुआ है जगत में ,
सबके एक ही तो हैं पालनहार !
हम तो कठपुतली हैं उनके,
हमारा अपना न चले कोई जोर !
उसके हाथों में थमी हुई है ,
हम सब के जीवन की डोर !
बंदा नीचे खूब नाच रहा है ,
और नचा रहा वो नचैईया !
हम सबको भव सागर पार ,
एक लगायेगा वही खवैईया !
उसी पे रखना सच्ची आस,
उसी पर रखना पूरा विश्वास !
जब भी फुर्सत मिले तो ,
बैठ जाओ उनके चरणों के पास !
न छल-कपट न बेइमानी ,
न ही रखना किसी से बैर !
हाथ जोड़ सब इंसान के भले की,
चलो, मांगते हैं हम सबकी खैर !
ना कुछ लेकर आये थे हम,
ना ही कुछ ले कर है जाना !
फिर भला क्यों माटी के इस,
शरीर पर इतना है इतराना !