सिखलायेगा
सिखलायेगा
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सिखलायेगा वह ऋत,एक ही अनल है,
ज़िन्दगी नहीं वह जहाँ नई हलचल है,
जिसमें दाहकता नहीं,न तो गर्जन है,
सुख की तरंग का जहाँ अंध वर्जन है,
जो सत्य राख में सने,रुक्ष रूठे हैं ,
हर नए रंग तरंग जहाँ खिलखिला सा है,
एक नहीं अनेक में मन लुभा जाएँ,
जहाँ ख़ूब पन्नों में लिखा यहीं तो संसार है!
