शोखियाँ
शोखियाँ
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वो शोखियाँ ही क्या जो शौक़ कर न सकी पूरा।
वो रंजिशों का क्या जो रंज भी भर न सकी पूरा।
वो दिल्लगी ही क्या जो दिलभर नही रहा पूरा।
वो हुस्न-ऐ-महफ़िल जो होकर नही कहाँ पूरा।
वो शमा परवानगी जो जलाकर नही लगा पूरा।
वो अलाव चिंगारी जो चला भी नही पता पूरा।
वो हुस्न-ऐ-इज़्ज़त जो कहकर नही सुना पूरा।
वो "हार्दिक" ऐ-दिल भी नादान नहीं बुना पूरा।
