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Manju Saini

Others

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Manju Saini

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शीर्षक:यादें

शीर्षक:यादें

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यादें ऐसी हैं मानों रात ने स्वयं को

रोशनी से अलग करने के लिए

अंधेरे के आवरण को ओढ़नी बना ली हो

और अपने को उसकी आड़ में छिपा लिया हो


यादें स्वयं को रखती हैं आवरण में 

रात्रि शशि की प्रतिक्षा ओट से झांकती सी

अरुणोदय के दर्शन की प्रतीक्षा में मानों

कर रही थी जन्मों जन्मों से इंतजार

उसकी आगोश में समा जाने को


यादें स्वयं को रखती हैं आवरण में 

नींद में प्रेमी को प्रतीक्षा उसी तरह 

मानों दृग ने कैद कर लिया हो 

उसके हमसफ़र को पलकों के अतल में

और उसको इंतजार हो नव प्रभात का


यादें स्वयं को रखती हैं आवरण में 

संसार के छलावे ने मानों कैद किया हो

यादों के साये को अपने भीतर

और विछोह की तड़फन दी हो प्रतिपल

दरस मात्र के पल को बस यूँ ही दर्द दे कर।



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