सब अपने हैं
सब अपने हैं
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किसको अपना समझूँ?
किसको पराया समझूँ?
सब तो अपने ही हैं
किसको बेगाना समझूँ?
यह वादियाँ,ये दुनिया
ये गाते हुए पंछी
कैसे कह दूँ इनसे
मुझ को प्यार नहीं है
इनसे मेरा पुराना नाता है
क्योंकि, ये सब अपने ही तो हैं
मैं तो ठहरा आवारा, प्रेमी कवि
सबसे प्यार करता हूँ
नहीं किसी से भेदभाव करता हूँ
प्रेम सुधा का समान जल बरसाऊँ
मैं वह प्रेमी बादल हूँ
अतः किसको अपना समझूँ?
किसको पराया समझूँ?
सब तो अपने ही हैं
किसको बेगाना समझूँ?