सावन
सावन
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फिर से सावन आया है,
फिर से सावन आया है।
वृक्ष यहाँ मटमैले थे,
पंछी त्रास में चहुँ ओर फैले थे।
झरनों कि कल-कल सूनी थी,
मिट्टी कि भीनी महक अधूरी थी।
फिर बारिश ने धूप से मिलकर,
नभ में इंद्रधनुष सजाया है,
फिर से सावन आया है,
फिर से सावन आया है।
भ्रमण पर निकले पथिक को,
प्रचंड तेज में कार्यरत श्रमिक को,
बूंदों में इठलाते इन फूलों को,
शाखों पर लटके झूलों को,
चार चाँद लगाकर मौसम फिर शर्माया है,
फिर से सावन आया है,
फिर से सावन आया है।
जब-जब तू ज़मी पर आया है,
प्राकृतिक सुंदरता को और आकर्षक बनाया है।
दिल चाहता है, तुझे यूँ ही थाम लूँ हाथों में,
पर रेत, पानी और सावन को कौन हाथों में बाँध पाया है।
सुकून हैं, तू अगले बरस फिर आयेगा,
जैसे इस बरस भी आया है।
फिर से सावन आया है,
फिर से सावन आया है।
