ऋतुओं का राजा
ऋतुओं का राजा
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बसंत ऋतु ऋतुओं का राजा ,
इसके आने पर जाड़ा भागा ,
दिन हो गए अब बड़े सुहाने ,
बिना स्वेटर चल दिये दीवाने।
आमों पर बौरा लहराये ,
पंछी गगन में अब इतरायें ,
कोयल कूँ - कूँ करती काली ,
साखियाँ झूला झूलें प्यारी।
बाजे ढोल , मृदंग और ताशे ,
नए उत्सवों के बजते बाजे ,
सरोवर ढके हैं हर जगह कमल से ,
पतंगें कटतीं नीले गगन से।
सजती पकवानों से थाली ,
माँ सरस्वती की वीणा प्यारी ,
सब उनको जब भोग लगाते ,
सुख , समृद्धि अपने घर पाते।