रंग बरसे
रंग बरसे
रंग बरसे भीगे दुनिया सारी,
होली मनती रहे सदा हमारी।
जब हम छोटे बच्चे थे,
बड़ी शरारत करते थे ।
आजाद पंछी थे हम ,
खेलते कूदते मुस्कुराते थे।
यूं ही मौज उड़ाते थे ,
टेंशन ना हम लेते थे ।
होली के रंग में बस,
हम तो यूं ही रंग जाते थे।
एक आलू को काटते ,
उसमें काली स्याही लगाते ।
चुप-चुप जाकर एक दूजे के
कमर पर हम तो लगाते ।
वाह रे वाह वाह रे वाह
वो भी क्या दिन थे
बाल्टी में पानी भर कर ,
उसमें देते थे रंग उड़ेल।
उसमें देते थे पिचकारी
एक दूजे को नहलाते थे ।
अच्छे होते रंग-बिरंगे,
रंग इतना सुख देते हैं ।
इन रंगों को भी देखकर,
होली की याद दिलाते हैं।
इन रंगों के बिना सूनी पड़ी ,
होली रंगों से ही खेले हम ।
महिमा बड़ी न्यारी लगती
एक दूजे को ढूंढे हम।