अगर जो ये टूटी तो ये मचलती क़लम, हमारी ज़िदगियों में लहक का सैलाब लाएगी। अगर जो ये टूटी तो ये मचलती क़लम, हमारी ज़िदगियों में लहक का सैलाब लाएगी।
जिस घर में आई हूँ, उसे भी मैं संवार पाऊँ, मत लगाओ पाबंदियाँ, ताकि मैं भी स्वतंत्र रह पाऊँ...! जिस घर में आई हूँ, उसे भी मैं संवार पाऊँ, मत लगाओ पाबंदियाँ, ताकि मैं भी स्वतंत्...