रौशनी
रौशनी
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थी उमर मेरी पांच साल
टिकाए नज़रे खिड़की के बाहर
कर रहा था किसी अपने पर अनजाने का इंतजार
देखने के लिए उस मासूम को दिल था बेक़रार
माँ की गोद में थी फूल सी कोमल परी
आई थी लेकर खुशियों की लड़ी
मना रहे थे सब नया साल
जलाकर रंगबिरंगी फुलझड़ी
रखा मैंने उसे हाथो में
कांच की तरह अपने बाँहों में
वो थी मेरी जान
और मेरा अभिमान
अब था सवाल उसे क्या कहकर बुलाए
विभिन्न नाम हर रिश्तेदार ने सुझाए
आई थी घर में लक्ष्मी करने हमें धनी
प्रकाशित था काला आकाश और खुशियां तिगुनी
इसलिये नाम दिया रौशनी