जीवन का अमृत
जीवन का अमृत
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सत्य भले ही गया हो मर
तू मन में उम्मीद का दीप जलाकर,
चलना उसी की राह पर।
यदि तू गिर पड़े राह में,हौसला कम ना हो विश्वास में,
तू फिर उठके चल जीत की चाह में।
जीत के गीत गाए जा,
तू दीप से दीप मिलाए जा,
उस लौ की ज्वाला बनाएं जा।
ज्वाला बना तू इतनी विशाल,
के सूर्य भी नमे तेरे द्वार,
आएगा फिर सतयुग का काल,
तब होगा अमृत का साक्षात्कार।