राज
राज
रविवार का दिन था। राज की माँ ने राज को बाज़ार से सब्जियाँ लाने को कहा। माँ की बात सुनकर राज बाज़ार से सब्जियाँ लेने गया। रास्ते में उसे कुछ दोस्त मिल गये। फिर राज दोस्तों के साथ टहलने चला गया और खेल-खेल में ही सब्जी के पैसे भी खर्च कर दिये।
सुबह से शाम हो गयी, पर राज दोस्तों के साथ खेलने में इतना व्यस्त रहा कि उसे घर पर सब्जी ले जाना है, इसका ख्याल ही नहीं आया।
उधर राज की माँ बहुत परेशान थी कि राज आखिर सब्जी लेकर आया क्यों नहीं?
जब अँधेरा होने लगा राज घर आ गया। राज को माँ से खूब डाँट पड़ी। राज चुपचाप रहा क्योंकि राज को अपनी गलतियों का एहसास हो गया था। थोड़ी देर बाद राज ने देखा कि माँ बहुत परेशान है। राज माँ को परेशान देखकर खुद भी बहुत परेशान हुआ। उसने माँ से माफ़ी मांगी कि अब वह ऐसा नहीं करेगा।
माँ ने भी राज को माफ़ करके गले से लगा लिया।
अगले दिन सुबह ही राज ने माँ से कहा कि-, "माँ! आज मैं विद्यालय नहीं जाऊँगा। मैं आपकी सेवा करूँगा। आप मुझे पैसे दीजिए। आज सही समय पर जो भी आप सामान मँगवायेगी, ले आऊँगा।
माँ ने राज को समझाते हुए कहा-, "बेटा! तुम विद्यालय जाओ। बाकी काम मैं कर लूंगी।"
राज ने जिद करते हुए कहा-, "माँ! मेरा मन पढ़ने में नहीं लगता है। मैं विद्यालय नहीं जाऊँगा। वैसे भी मेरे एक अकेले न पढ़ने से क्या होगा। मैं घर पर रह कर आपकी सेवा करना चाहता हूँ।"
माँ ने प्यार से समझाते हुए कहा बेटा-, "एक व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश जुड़ा होता है। रही बात मेरी सेवा की, तुम पढ़-लिखकर भारत माँ की सेवा करो, तब मुझे माँ होने और तुम्हें अपना बेटा कहने में गर्व महसूस होगा।"
राज को तुरन्त बात समझ में आ गयी। उसने माँ से पुन: माफ़ी माँगी और तैयार होकर विद्यालय की ओर चल पड़ा।
शिक्षा-
देश प्रेम माँ, धर्म और संस्कृति से बढ़कर होता है।