राधा रानी
राधा रानी
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मिलने को तरस रही अखियां,
जुदाई ने ये रीत बांधी है,
बिछड़ के तुमसे ओह...कान्हा !
राधा ने अपनी खुशियां त्यागी है,
रूठी हैं सारी खुशियां उसकी,
बिछड़ गई वो तुमसे,
अब ओर क्या चाहिए उसे,
उसने तो अपनी जिंदगी त्यागी है,
प्रेम का स्वरूप हे वो,
पर बिछड़ने का गम लिए
जी रही अपनी दुनियादारी है,
क्या मांगे वो अब,
उसकी दुआ में जो तुही बाकी है,
जुदा होकर वो तुमसे,
तेरी ही दीवानी है,
प्रेमार्थ समझाए वो,
वहीं राधा रानी है,
दुनिया की रीत है जूठी,
सच्ची रीत उसीसे सबने जानी है,
प्रेम रीत क्या हे! ये तो स्वयं...
राधा कृष्ण की प्रीति से पहचानी है।