क़ैद
क़ैद
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तुमने पिंजरे में क़ैद परिंदा को देखा है
फड़ फड़ कर फड़फड़ाता है,
मेरे अंदर भी एक परिंदा है,
मेरे मन का परिंदा
झिक झिक कर झकझोरता है
दोनों परिंदे सोचते है कि
एक को उसकी सुंदरता ने क़ैद किया
और दूसरे को उसकी जिज्ञासा ने क़ैद किया
दोनों परिंदे आज़ाद होना चाहते है,
बोलो तुम आज़ाद करोगे?
