प्रकृति
प्रकृति
इस प्रकृति के बिना ,
कितना सूना है सब कुछ ?
सोचो गर पेड़ ना हों ,
तो बिन श्वास जाए ये दमघुट।
फूल जब भी बिखेरें अपनी सुन्दरता ,
उन्हे देखे बिना ये मन नहीं भरता ,
बादल आसमान में ऐसे आते ,
कि सबके मन हर्षित हो गाते।
कूके कोयल डाली - डाली ,
काली है पर कितनी मतवाली ,
नाचे मोर रँग - बिरंगे पंखों से ,
शोर करें पपीहे कितने वर्षों से।
कितनी सुन्दरता इस धरा पर छाई ,
जब बसंत ऋतु की हुई अगुवाई ,
प्रकृति में भी हुआ प्रणय निवेदन ,
भँवरे करें फूलों के रस का सेवन।
मानव जीवन प्रकृति की देन ,
जो ये ना हो तो सब मूंदे नैन ,
इसलिये रखो इसे हरदम संभाल ,
प्रकृति के बिना हम सब कंगाल।
