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Praveen Gola

Others

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Praveen Gola

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प्रकृति

प्रकृति

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इस प्रकृति के बिना ,

कितना सूना है सब कुछ ?

सोचो गर पेड़ ना हों ,

तो बिन श्वास जाए ये दमघुट।


फूल जब भी बिखेरें अपनी सुन्दरता ,

उन्हे देखे बिना ये मन नहीं भरता ,

बादल आसमान में ऐसे आते ,

कि सबके मन हर्षित हो गाते।


कूके कोयल डाली - डाली ,

काली है पर कितनी मतवाली ,

नाचे मोर रँग - बिरंगे पंखों से ,

शोर करें पपीहे कितने वर्षों से।


कितनी सुन्दरता इस धरा पर छाई ,

जब बसंत ऋतु की हुई अगुवाई ,

प्रकृति में भी हुआ प्रणय निवेदन ,

भँवरे करें फूलों के रस का सेवन।


मानव जीवन प्रकृति की देन ,

जो ये ना हो तो सब मूंदे नैन ,

इसलिये रखो इसे हरदम संभाल ,

प्रकृति के बिना हम सब कंगाल।



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