प्रकृति का शोषण
प्रकृति का शोषण
कब तक ऐसे ही प्रकृति का शोषण होता रहेगा,
प्रकृति से ऐसे छेड़छाड़ करके हरण होता रहेगा।
प्रकृति हमें ताज़गी भरी बहती हवा देना चाहती,
हम इंसानों को प्रदूषण फैलाते शर्म नहीं है आती।
जब-जब प्रकृति के नियमों का उल्लघंन है हुआ,
इंसान के साथ निर्दोष पशु-पक्षियों का अंत हुआ।
बूंद-बूंद बारिश की टप-टप करती सुहावनी लगती,
वो ही बूंदें सुनामी बनकर फ़िर डरावनी भी लगती।
नयनों को मूंदें हुए सरकार भी रामभरोसे जैसे यार,
प्रकृति का दोहन कर आफ़त बुलाते रहेंगे बार-बार।
लगता है कि सृष्टि का पतन अब पास-पास आ गया,
माया के लिए अंजान हो बुला रहे हम मौत का साया।