प्रकृति एक अमूल्य धरोहर ....
प्रकृति एक अमूल्य धरोहर ....
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आज जिंदगी कीमती व दौलत सारी गौण हो गई ।
कल कुछ और थी, जिंदगी और आज कुछ और हो गई ।।
काट कर पेड़ लाए थे महल अटारी बनाने के लिए ।
आज दिल में तड़प जगी है, उसी के ऑक्सीजन को पाने के लिए ।।
हमारे कृत्यों ने इस धरा को नर्क बना दिया ।
फिर भी हमे समझ नही आता कि प्रकृति के साथ हमने क्या क्या किया ।।
हर जन हर वर्ष अपने जन्मदिवस पर गर एक वृक्ष लगाए ।
तो निश्चित ही हमारी पृथ्वी फिर से स्वर्ग बन जाए ।
आओ समझाते हैं सबको प्रकृति व वृक्ष की कीमत ।
अपने भावी पीढ़ी को छोड़ जाते हैं दौलत से भी कीमती वसीयत ।।
जिन चंद सांसों की कीमत हजारों रुपए देकर चुकाते हैं ।
अनगिनत सांसे जन्म से मृत्यु पर्यंत मुफ्त में पाते हैं ।।