परियों के लिए
परियों के लिए
1 min
350
कोशिशें तो बहुत की
कि तोड़ के खा लूं
चांदनी और कच्ची धूप में
पके खुशियों के फल,
जो उगे हैं बूढ़े लम्हों के पेड़ों पे।
खट्टी-मीठी यादों की सीढियां बना कर
चढ़ता रहा कदम-दर-कदम...
हर कदम लेकिन चढ़ते हुए
मैं देख रहा था
उस पेड़ की मुस्कान को भी
जिसकी जड़ों में दफ्न थी
मेरे पिता की खुशियाँ....
उनके संस्कारों ने ही तो
उसे जमीं से जोड़ रखा था।
हर डाली जैसे
अपनी बाहें फैला के
मुझे बुला रही थी...
और मैं खुशियों के पके फल
तोड़ कर
ख़ामोशी से चल पड़ा
अपनी परियों को खिलाने।
ताकि उनकी कहानी में दुःख भरा कच्चा फल न आए।