प्रेम की सारी निलम्बित कविताएँ
प्रेम की सारी निलम्बित कविताएँ
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प्रेम की सारी निलम्बित कविताएँ
एक मौन प्रार्थना हैं
एक प्रणय गीत हैं
एक मधुप छंद हैं
जिनका ना कोई विस्तार है
और ना ही कोई निषिद्ध प्रारूप
जिसका ना कोई प्रारब्ध था और
ना ही कोई अंत
और ना ही
कोई अस्तित्व समय पटल पर
वो कविताएँ बस
खोजती रही अपना
अमरत्व और मधुत्व
प्रेम की स्याही और
आत्मा के काग़ज़ पर I
उनका होता है स्वच्छंद गान
ना कोई लय बांध सकती है उसे
और ना ही कोई शृंगार रस
वो होती है उन्मुक्त गान
आत्मसमर्पण की उत्कृष्ट पहचान I
ना कोई प्रलय
और ना कोई सृजन
करता उसके अस्तित्व को स्थापित
फिर भी वो कविताएँ
होती अक्सर निलम्बित प्रेम के प्रांगण में
पर होती शाश्वत अबोध वो प्राण-चेतन I
