क्षणिकाएँ
क्षणिकाएँ
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१) धूप की बारिश
जहाँ होती है
थोड़ी शिकायतें
और थोड़ी सिफ़ारिशें I
२)पूछने हैं कुछ सवाल
और बताने हैं कुछ जज़्बात
विस्मृत हो देखूँ या फिर
करूँ अनगिनत सवाल I
३)फूलों का शृंगार हो
स्फुटित हो नव आशा
प्रांगण में बसता महकता
एक प्यार सा गुलिस्ताँ हो I
४) धरती पर उतरी
बूँदे ये “मुकुलित-अनंत”
मानो हों कोई सुर-कंदर्प नया I
रचती नयी ऋचाएँ
महकते प्रकृति के आखर आखर I
देखो कैसे मंद-मंद मुसकाएँ
ये अरूप-माधुरी
“विद्रुम-प्रवाल” I
