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Madhu Vashishta

Abstract

4.5  

Madhu Vashishta

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पड़ोसन

पड़ोसन

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पड़ोसन खाए दूध दही

हमसे यह ना जाऐ सही।

हम भी किसी से कम तो नहीं।

बस बात यूं ही खत्म होगी नहीं।

जबसे पड़ोस में पड़ोसन आई थी,

वह सबके मन को भाई थी।

उसके सुंदर पहनावे को देख,

उसको सुघड़ सलीकेदार बताकर

सबने हंसी मेरी उड़ाई थी।

उसके बाद प्यारी सखियों, 

मैंने भी घर में रोटी नहीं बनाई थी।

निकाल पति की जेब से पैसे,  

मैं ब्यूटी पार्लर में आई थी

बनके उस पड़सन से भी सुंदर

जब मैं वापस घर पर आई थी।

देख सास-ससुर संग पति

और बच्चों की भूखी शक्लें,

मैं मन ही मन मुस्काई थी।

इससे पहले कोई कुछ बोले,

मैंने अपनी फोटो सबको दिखाई थी।

देखो फेसबुक की फोटो में

मेरी फोटो पर पड़ोसन से भी

ज्यादा लाइक आई थी।

भूखे रहने की आदत डाल लो,

मैं रोज देखती हूं, कि हमेशा रोटी

पड़ोसन के पति या उसकी सास ने ही बनाई थी।

मुझसे कोई उम्मीद ना रखना। 

मुझे पड़ोसन से भी सुंदर और सुघड़ है बनना।

सबके मायूस चेहरे देखकर फिर दया मुझे हो आई थी।

उस दिन आते हुए सबके लिए मैं कुलचे छोले ले आई थी।

खाना खाकर सब ने मुझसे बोला।

तुमसे सुंदर कोई हुआ ना होगा।

सासु जी ने सब को फटकारा और गुस्से में सबको बोला।

सबसे अच्छी मेरी बहू है , छोडूंगी नहीं उसको,    

यदि किसी ने मेरी बहू को कुछ भी बोला।



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