नारी... तुम!
नारी... तुम!
1 min
191
नारी,
कभी कोमल, कभी कठोर
कभी रजनी सी शांत
कभी चंचल जैसे भोर
अनुराग भरी, कभी दर्द लिए
समर्पिता
कभी कल्याणी, कभी दंभ लिए अभिमानी
कभी श्रद्धा है कभी निष्ठा है
कभी खड़ी हो देती अग्निपरीक्षा है
है चंदन सी स्निग्ध
कभी दुर्गा सी शक्तिशाली है
है मधुशाला सी मादक कभी
बावरी कभी मतवाली है
त्याग करे दायित्व निभाए
ममता की छाया में सब को झुलाये
हर दुख सहती पर कुछ ना कहती
नारी बस स्वाभिमानी है
माँ, पत्नी, बेटी, प्रेयसी
क्या क्या रूप निभाती है
हर रूप को निभाती निष्ठा से
फिर भी देखो अनजानी है
नारी! नमन है तुझको
भीगे न कभी तेरे नेत्रों की कोर
नारी कभी... कोमल कभी कठोर।
