मैं नही यूँ ..गलने वाली
मैं नही यूँ ..गलने वाली
मै नहीं
यूँ ही गलने वाली
मोम की तरह,
जरा से ताप से
यूँ ही पिघलने वाली।
हिम नहीं वो जो
जरा सी आँच से
हो जाये पानी,
शब्द नहीं कोरे
जो बन जाये
दर्द भरी कहानी।
ना हूँ मै वो दिया
जो बुझ जाये जरा
से तूफानों में,
वो जाम नहीं
छलका दे कोई भी
मयखानों में।
जीत हार कुछ भी हो
मै नहीं डरने वाली,
दुःख की आँच
कितना जलाये
पथ से नहीं टलने वाली।
केवल सुख मिले मुझको
ऐसी मेरी चाह नहीं,
सुख मिले या टीस मिले
इन सबकी मुझे परवाह नहीं।
मै तो हूँ वो भोर सुनहरी
लिए हूँ मैं सहस्त्रों हाथ,
बन कर चली स्वछंद सरिता सी
लिए वक़्त को अपने साथ।
कर मुट्ठी में लक्ष्यों को अपने
आतुर हूँ पूरे करने को सपने,
ये बाधाएँ ये कठिनाई
देख बनी खुद मेरी हमराही।
मै हूँ वंशज उस वीर पुरुष की
जो जड़ में पल भर में फूंक दे प्राण
मैंने सीखा उससे लेना
और देना सम्मान ,
मैं करती हूँ जो मन मे ठानी
हूँ निर्भया ,,हूँ ...स्वाभिमानी
मैं आशा हूँ सुनहरी वो
सबके हृदय में हूँ पलने वाली।
