न मैं जीती न तुम हारे
न मैं जीती न तुम हारे
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पर्दे के पीछे तुमने मुझे
ढक तो दिया,
पर तुम भूल गये परदा भी
मुझे ढंग से ढक नहीं पाया।
तुमने लगाना चाहा मेरे
अरमानों पर पहरा,
पर भूल गये हौसले उड़ानों
से उड़ते हैं।
कितने पर कुतरोगे,
इरादों के पर कैसे काटोगे।
मुझे दबाने-गिराने में तुम
इतने मगशूल हो गये कि
तुम्हें अंदाजा ही न रहा,
तुम कब पीछे और मैं कब
आगे निकल गई।
काश! इस आगे-पीछे
न रहकर हम साथ चलते
तो हम दोनों मिलकर
क्या से क्या कर जाते।
