मुराद- A Selfish Relation With God
मुराद- A Selfish Relation With God
जिसके नूर-ए-करम1 से मैं पूरी हर मुराद2 करता हूँ,
उसके दामन से ही खुद को रोज़ आज़ाद करता हूँ।
जब “मैं-मैं” करने वाला ‘मैं’ कुछ नहीं कर पाता,
फिर दिल की गहराई से ख़ुदा को याद करता हूँ।
जब इस दुनिया में मुझे कोई अपना नहीं लगता,
फिर ख़ुदा को अपना समझकर फ़रियाद करता हूँ।
जब इन्तिहा3 लगती मुझे अपने दर्दों को सहने की,
तब अपनी नज़रों में ख़ुदा को जल्लाद4 करता हूँ।
मज़लूम5 रास्ते खुद ही चुनकर मुसीबत के वक़्त,
ख़ुदा को अपनी ज़िन्दगी का उस्ताद करता हूँ।
ख़ुद का सही-२ पता नहीं ख़ुदा का वजूद बताकर,
मासूम सी ज़िन्दगियों में पैदा फ़साद6 करता हूँ।
ये कैसा रिश्ता बनाकर रखता हूँ तुझसे ख़ुदा,
जो ख़ुशी मिलने पर ही मज़बूत बुनियाद7 करता हूँ।
कितना ख़ुदगर्ज़8 हूं मैं अशीश जो पाक ख़ुदा को,
बस मतलब के लिए अपने अन्दर आबाद करता हूँ।
1.grace of God 2.wish 3.utmost limit 4.cruel 5.wrong 6.riot 7.foundation 8.selfish