"मनुज रूप में भेडिया "
"मनुज रूप में भेडिया "
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लोक कथाओं में पढा,रहस्य भरी वो बात
मनुज रूप में भेडिया ,बनें पूर्णिमा रात
बने पूर्णिमा रात,भेष बदल कर डराता
खूब करें वह वार,मनुज को मार गिराता
डरें भगे सब लोग,चीख सुनें वन लताओं
करों तर्क की बात ,सार ना लोक कथाओं।
