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RohiniNalage Pawar

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मेरी कलम

मेरी कलम

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ऐ कलम, मैं तुझ से नाराज़ नहीं हूँ ,

बस थोड़ी सी नासमझ हूँ,

क्योंकि, तू जो लिखती है

उससे मैं वाक़िफ़ नहीं हूँ...


तुझसे कुछ लिखवाते वक्त

मैं यहीं सोचती हूँ की

कुछ तो ढक कर लिखूँ,

फिर तू ...मेरे मन में जो

आता है

वहीं पन्नों पर उतार देती है...


इसलिये थोड़ी सी रूठती हूँ,

पर तू तो साये की तरह हर सोच को

ग़ज़ल, शायरी, कविता में डालकर

शब्दों में जान डालती हो...


तू आईना बनकर

मेरे अल्फ़ाजों को जिंदा रखती हो

कभी कभी कुछ ना कुछ बिगाड़ती हो,

इसलिये तुझसे गुस्सा हो जाती हूँ,

तेरी तरफ पीठ फेरती हूँ,

और बाद में फिर तेरे ही आगे

झुक जाती हूँ..


क्योंकि

शायद मेरी कलम में मेरे

हर सवाल का जवाब होता है

ये समझ मुझ में थोड़ी देर से आती है...

क्योंकि मेरी सोच से अब मैं भी

वाक़िफ़ होने लगी हूँ


तूने आज तक जो भी लिखा है

उसमें हर किसी के सोच के रंग हैं,

तभी तो तू मेरी कविता का

एक अहम हिस्सा है...



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