मेरी बोली
मेरी बोली
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इस बार की मेरी जन्मदिन
बहत खास रही
दो प्राप्ति ने मन को
भर ही डाली।
एक मेरी पिता,
दूसरी उनकी उपहार बोरी
वो जानते है बेबसी मेरी
पर कुछ बताती नहीं !
मेरी मन की सागर की गहराई को
नापते है आसानी है वही
पर वो कुछ बोलती नहीं !
मेरी भावनाओं की तरंग में
एक नौका बन के वह आयी
गोरी कागज पर भाबनाओ
की रंग बिखर ने की
सौगात है लायी।
जिसे कहते हैं लोग क़लम
मेरी तो अब वो जुबाँ की
बोली बन गयी !
