"मैं"
"मैं"
बहुत छोटा है "मैं" का अस्तित्व |
घमंड से भरा हुआ, अहंकार का व्यक्तित्व ||
विजय प्राप्ति हो तो सबसे पहले "मैं" |
त्रुटी हो जाऐ तो अंत में "मैं" ||
बहुत छोटा है "मैं" का अस्तित्व ||
कोई "अभिमानी" होकर गर्जना करता है "मैं" की |
कोई स्वार्थी होकर "अर्चना" करता है "मैं" की ||
कोई अश्रु भर "भर्त्सना" करता है "मैं" की |
कोई तन्हाई में जाकर "विवेचना" करता है "मैं" की ||
अंत में सिर्फ़ "शून्य" रह जाता है |
"मैं" का "मैं", "मैं" में मिल जाता है |
बहुत छोटा है "मैं" का अस्तित्व
जब "परहित" में कार्य करना हो "मैं" आड़े आता है |
जब बुराई से लड़ना हो "मैं" आड़े आता है ||
"मैं" से अकेले क्या बना ?
सिर्फ़ "ईर्ष्या" या "द्वेष" ?
जब "मैं" हम में बदल जाऐगा तभी बदलेगा देश
विशेषताऐं अनेक है परन्तु मर्म एक है
कितने हिस्सों में बाँटोगे ? वेश यहाँ अनेक हैं
देश को जोड़ना है, या तुम्हे तोड़ना है ?
थोड़ा तो सोच लो, सबके पास "विवेक" है