मैं मुक्त गगन का पंछी हूँ
मैं मुक्त गगन का पंछी हूँ
मैं मुक्त गगन का पंछी हूँ
आजादी मुझको प्यारी है।
मुझको औरों की परवशता
लगती कोई बीमारी है।।
उड़ने की खातिर ईश्वर से
मजबूत मुझे हैं पंख मिले।
अपने पंखों की ताकत से
कर सकता हूँ मैं फतह किले।
फिर क्यों समझूँ इस दुनिया में
आजाद घूमना भारी है।
मैं मुक्त गगन,,,,,,,,,,
जो परवशता में रहता है
जीना उसको धिक्कार यहाँ।
सपने में भी उस मानव को
मिल सकता कभी न प्यार यहाँ।
क्यों भूल रहा है पंछी तू
दुनिया यह अत्याचारी है।।
मैं मुक्त गगन,,,,,,,,,
तोड़ सको जो तोड़ो तुम
जंजीरे ये परवशता की।
जीवन जीना तुम यहाँ सदा
मिलकरके सब समरसता की।
आजादी का हर इक मानव
जग में सच्चा अधिकारी है।
मैं मुक्त गगन,,,,,,,,,,,