मैं एक गुमनाम शायर
मैं एक गुमनाम शायर
फिर वही दिन,पुरानी याद लेकर आए हो
क्या दें तुम्हें दुआएं,यादों की बरसात लेकर आए हो
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वो वक्त गुजरा ये भी गुजर जाएगा
उसका निशां बाकि,इसका भी रह जाएगा
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किसी ने दौलत से प्यार किया
किसी ने शोहरत से प्यार किया
हम तेरे रंग में सरोबार
हमने गुमनामी से प्यार किया
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मुस्कराहट न किसी की लौटा सके
आंसू न किसी के सुखा सके
इंसा होकर इंसा न बन सके
दावेदारी फरिश्तों की कर बैठे
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हर चेहरे की पहचान हो गयी
हर दर्द से अंजान हो गयी
तुमसे हुए जो रुबरु
इंसानियत की अजान में हो गयी।
