मानव के चार धर्म
मानव के चार धर्म
संसार में जब जन्म लिया
तभी धर्म-कर्म में प्रवेश किया
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासी चारों धर्मों
धर्म निभा जीवन में, मानव धर्म को सीखा दिया।।
मात-पिता के दुलार से हट
जब अध्यापन संस्था में प्रवेश किया
ब्रह्मचर्य को पालन कर
ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा को ग्रहण किया ।।
युवा अवस्था में आया जैसे ही
रोजगार प्राप्ति व शादी-विवाह जैसे
कर्तव्यों को निभा, अपने सब
गृहस्थ धर्म में प्रवेश किया ।।
लालन-पालन कर हर आश्रित का
शादी विवाह कर पुत्र-पुत्री का
पालक बन, हर ज़िम्मेदारी को पूर्ण किया
गृहस्थ धर्म को पूर्ण किया ।।
सुखी गृहस्थ का जीवन यापन कर
वानप्रस्थ के लिए प्रस्थान किया
प्रभु का ध्यान करता, कंद-मूल खा,
व्रत उपवास रखने का प्रण किया ।।
कठोर नियम बना चित्त धर प्रभु भक्ति में
सन्यासी जीवन का पालन कर
लगा चित्त को प्रभु भक्ति में
हर मानव धर्म को पूर्ण किया ।।
नियम बना चार धर्म के
मार्ग मोक्ष दिखा दिया
जीवन जीने का नियम बना
सही मार्ग नई पीढ़ी को दिखा दिया ।।