माँ तुझे सलाम
माँ तुझे सलाम
माँ! पल पल
हर पल
तुम और भी याद आई
जाने के बाद ।
तुम्हारे रहते
अब तक मैं तो रहा बस
एक मासूम सा बच्चा
अचानक बड़ा हो गया हूँ
माँ तुम्हारे जाने के बाद।
तुम थीं तो पढ़ लेती थीं
मेरे मन की हर भाषा
यूँ पूरी होती रही
मेरी सभी अभिलाषा
अब न रहना तुम्हारा
भावों में मेरे भर देता है निराशा।
कैसे याद रख पाती थीं तुम
जन्मदिन सभी का
नहीं भूलीं कभी जन्मदिन पर
हमारे मन पसंद व्यंजन बनाना
मगर याद है
सारा घर मिलकर भी याद न रख सका
एक जन्मदिन तुम्हारा
जीवन की इस
दर्द भरी घटना का
आज भी खेद है हमें
मगर आज भी याद है
वो मुस्कुराकर टाल जाना तुम्हारा।
सुना था पापा से
कभी तुम भी रचा करती थीं कविता
मगर जन्म होते ही मेरा
तुमने रची केवल रस भरी लोरियां
वो लोरियां
आज भी मुझे स्वर सम्राज्ञी के
किसी गीत से अधिक
मधुर लगती हैं।
आज भी जब होता हूँ बीमार
बहुत याद आती है माँ
तुम्हारी गोद का वह
नरमाहट भरा एहसास।
कैसे भुला सकता हूँ
मेरे किये गीले बिस्तर पर
वो रातें गुज़रना तुम्हारा
और सूखे में चैन से
मुझे सुलाना तुहारा।
डर न जाऊँ कहीं नींद में
तकिये के नीचे
वो सरोती रखना तुम्हारा
आज दिन रात
भयावहता से घिरा रहता हूँ
तुम्हारे जाने के बाद ।
याद आता है माँ!
तुम्हारा वह सतरंगी आंचल
जिसमें महफूज पाता था
मैं खुद को
दुनिया की तमाम मुश्किलों से
अब उलझकर रह गया हूँ
तुम्हारे जाने के बाद।
सुख समृद्धि के लिए घर की,
आंगन में लगाई थी
जो तुलसी
उस तुलसी के चौबारे को
साँझ के दीपक का इंतज़ार
आज भी है
तुम्हारे जाने के बाद।
नहीं भुला
जब हो जाती थी
स्कूल से आने में देरी
तो हो चिंतातुर बेताबी से
चहलकदमी करना तुम्हारा।
एहसास है उन पलों का
मुझे पढ़ाने के लिए
घंटों पढ़ना तुम्हारा
सुबह दे पाऊँ पेपर
इसलिए रातों को जागना तुम्हारा
और जब न ला सका अंक
परीक्षा में तुम्हारे चाहे अनुसार
तब महसूस किया था
नम आँखों को तुम्हारी
वही दिन बना
मेरा प्रेरणा स्त्रोत
बना में देश का वीर सिपाही
आज पा रहा हूँ
अशोक चक्र
मगर सम्मान लेते हुए
महसूस कर पा हा हूँ
ख़ुशी से सराबोर
वो दो आँखें तुम्हारी ,
तुम्हारे जाने के बाद।
आज उस मातृभूमि को करूँ
सलाम!
इससे पहले
अर्पण करना चाहता हूँ
श्रुध्दा सुमन
माँ!
तुम्हें तुम्हारे जाने के बाद।