माँ-बाप
माँ-बाप
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जब पैदा हुए नजर ने जिसे पहली
बार देखा वो माँ-बाप,
शब्दों से परिचय नहीं था
पर बिन कहे जो हर बात
समझते वो है माँ-बाप,
अपनी हर ख्वाहिशों को
दरकिनार कर,
हमारी ख्वाहिशों के लिए जिए
हर दुख का घूँट
हमारे लिए
हँसते हँसते पी गये,
थोड़े बड़े हुए जो
तो समझ दुनियादारी आई,
उनके शब्दों में कभी जो आया
भी था ग़ुस्सा
उसमे थी हमारी भलाई,
आपके इस प्यार का कैसे
चुका पाएँगे ऋण
धन दौलत एक तरफ
माँ-बाप का प्यार एक तरफ,
मैने सुना है
की पहला प्यार भुलाया
नहीं जाता
पता नही लोग कैसे अपने माँ-बाप को भूल जाते है
अंजानों से रिश्ता जोड़
अपनों से हाथ छुड़ा जाते है।
