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Thakur Sakshi Raghav

Others

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Thakur Sakshi Raghav

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लम्हे ज़िंदगी के

लम्हे ज़िंदगी के

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लम्हे ज़िंदगी के क्यूं

खुल के जी नहीं पा रही

जो बस कुछ पल का या फिर यूं कहूं एक पल 

के लिए भी नहीं था मेरा फिर भी ना जाने अपने 

हर पल को उस को दिए जा रही हूं 


कुछ टूटा भी नहीं कुछ छूटा भी नहीं

फिर ना जाने क्यूं हर खुशी के पल को छोड़ के जीये

जा रही हूं 


ना जाने लम्हे ज़िंदगी के क्यूं खुल के जी नहीं पा रही हूँ


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