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Akhtar Ali Shah

Others

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Akhtar Ali Shah

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लासानी स्कूल मेरा वो

लासानी स्कूल मेरा वो

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अश्व कल्पना के उड़कर के,

जब बचपन में जाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


आज बड़ा होकर भी जीवन,

तृप्त नहीं कहलाता है।

भागदौड़ कर कर भी अपनी,

मंजिल दूर ही पाता है ।।

रात रात भर नींद लापता,

दिन में ख्वाब सताते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


था खपरैल भले स्कूल पर,

कितना अच्छा लगता था।

नागा नहीं कभी करता मैं,

समय पूर्व ही भगता था।।

टाट पट्टियों के बीते दिन,

नही भुलाए जाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


आंख लाल की अगर गुरुजी,

ने पेशाब निकलता था।

डंडे भी खाते थे लेकिन,

तम जीवन का जलता था।।

हुआ नहीं सम्मान कभी कम,

लब उनके गुण गाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


नहीं व्यवस्था थी टिफिन की,

स्कूल था बस बाजू में।

शिक्षण शुल्क को लेकर बच्चे,

तुलते नहीं तराजू में।।

अब तो शिक्षा को पग पग पर,

पल पल बिकता पाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


खेलों का था वक्त मुकर्रर ,

जिसमें धूम मचाते थे।

संग दोस्तों के रहते हम,

लड़ते कभी मनाते थे।। 

मन खुश होता यार पुराने,

जब मुझको मिल जाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो,

मित्र बहुत तरसाते है।।


"अनंत" अब जब यही तमन्ना,

बीता बचपन मिल जाये।

खूब दोस्तों के संग खेलूं,

चाक गरेबां सिल जाए।। 

क्रूर वक्त के लम्हे कब पर,

संभव इसे बनाते है।

लासानी स्कूल मेरा वो ,

मित्र बहुत तरसाते है।।


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