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क्यों दिए को हवा में रक्खा है

क्यों दिए को हवा में रक्खा है

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क़ातिलों को वफ़ा में रक्खा है
क्यों दिये को हवा में रक्खा है

जिनके हाथों में प्यासा खंज़र है
हमने उसको दुआ में रक्खा है

तेरे आमद से आँखे चमकी हैं 
नाम तेरा ज़िया में रक्खा है

जिस घड़ी मुस्कुरा के देखा था
पल वही इब्तदा में रक्खा है

जिसके सौ ज़ुर्म माफ़ है रेणू
उसने हमको सज़ा में रक्खा है


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