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shiv sevek dixit

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shiv sevek dixit

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कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

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जीवन-सरिता की लहर-लहर,

मिटने को बनती यहाँ प्रिये

संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने

हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये।


पल-भर तो साथ-साथ बह लें,

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।


आओ कुछ ले लें औ' दे लें।


हम हैं अजान पथ के राही,

चलना जीवन का सार प्रिये

पर दुःसह है, अति दुःसह है

एकाकीपन का भार प्रिये।


पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,

आओ कुछ ले लें औ' दे लें।


हम-तुम अपने में लय कर लें।

 उल्लास और सुख की निधियाँ,

बस इतना इनका मोल प्रिये

करुणा की कुछ नन्ही बूँदें

कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये।


सौरभ से अपना उर भर लें,

हम तुम अपने में लय कर लें।


हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।


जग के उपवन की यह मधु-श्री,

सुषमा का सरस वसन्त प्रिये

दो साँसों में बस जाये और

ये साँसें बनें अनन्त प्रिये।


मुरझाना है आओ खिल लें,

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।


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