कश्ती
कश्ती
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सीख रहा हूँ सलीके ज़िदगी के
देख रहा हूँ चेहरे बंदगी के
टूट गया आँसू जो रोने को आया
बिखर गया ग़म जो खोने को आया
कुछ पल बिताने में चल पड़ा ये सफर
कभी यहाँ कभी वहां किसको थी किसकी खबर
पहरेदार थे बहुत से इस खबर के
दर्द बहुत छिपे है दीवारों मे सबर के
पता ना हो तो इन घटाओं से रास्ता पूछना
पानी बहुत गहरा है इसमे मत कूदना
क्या है दर्द क्या है ये प्यार
एक ही कश्ती पर कितने सवार
भूल गया जो वो भुला दिया
'सारण' फूल जहाँ खिलना था वहां खिला दिया