बेख़बर
बेख़बर
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किस तरह बीतता है ये सफ़र
कभी तु सामने कभी मे बेखबर
होता है इलाज़ अक्सर ही मेरा
दर्द-ए-रात मे कभी-कभी होता है सवेरा
क्यों ना हो इंतज़ार उस दिन का
जो टूट गया कहाँ है वो तिनका
अगर वो रोते है तो थोड़ा खोने दो
बरसात होती है तो होने दो
मिलाया ना करो मुझे ऐसे किसी से करीब
फर्क किसी को नहीं पड़ता किसी को किसी का नसीब
होश तो उससे था मेरा पता नहीं
मदहोश तो था वो लेकिन खफा नहीं
