'कटी-पतंग’ के जैसे, खुद ही उड़ा कटा चला जाता हूँ...! 'कटी-पतंग’ के जैसे, खुद ही उड़ा कटा चला जाता हूँ...!
उड़ी उड़ी रे पतंग, उड़ी उड़ी रे मलंग, उड़ी उड़ी रे चाँदनी चौक में...! उड़ी उड़ी रे पतंग, उड़ी उड़ी रे मलंग, उड़ी उड़ी रे चाँदनी चौक में...!
जहाँ घुमाया हवा ने, वहीं चल पड़ी, खुद को भूल, उसके संग हो चली...! जहाँ घुमाया हवा ने, वहीं चल पड़ी, खुद को भूल, उसके संग हो चली...!
बंद आँखों से एक ख्वाब देखता हूँ, ख्वाब में तुझे अपना देखता हूँ! बंद आँखों से एक ख्वाब देखता हूँ, ख्वाब में तुझे अपना देखता हूँ!