खुद की पहचान
खुद की पहचान
तेरी जद में है, साखी ज़माना
गर तूने ख़ुद को है, पहचाना
उठ खड़ा हो न डर किसी से,
तेरे हाथ में है, उठना, गिर जाना
उड़ान कभी परों से नहीं होती,
हौसलों से होती है, यहां साखी
पर तो होता है, बस एक बहाना
तेरी जद में है, साखी ज़माना
गर तूने खुद को है, पहचाना
जो करता कर्म निडरता से,
वही बनाता इतिहास का दाना
वो क्या ख़ाक रहेंगे, यहां पाक
जो खाता है, दूषित कर्म का खाना
वही बनता यहां पे विजेता, साखी
जिसके पास दीपों का है, घराना
वही मिटाता तम बहुत पुराना
जिसके पास है इस दुनिया में
खुद की रोशनी का ताना-बाना