STORYMIRROR

खबर ही नहीं ...

खबर ही नहीं ...

1 min
13.3K


जाने कैसे किसी के इतना करीब गया 
जो शीशे की तरह मैं टूट गया 
दूसरों को खुद में झाँकने का पूरा मौका दिया 
और खुद के हाल की 
खबर ही नहीं ...

यादों को आने का मौका कब मिलता 
वो तो ख्यालों से दूर कभी गयी ही नहीं 
उसके ख्यालों में मैं खुद को भूल गया 
इस भूल की मुझको 
खबर ही नहीं ...

दुनिया जैसे किसी सूरज के नहीं 
किसी चाँद के चक्कर लगाती थी मेरी 
रहता था चाँद इस ज़मीन पर 
पर उस चाँद की रौशनी किसी और की थी 
इस बात की मुझको 
खबर ही नहीं ...

अकेले रहने की अजीब सी आदत थी मुझको 
खुद का साथ देने के लिए खुद ही बहुत हूँ, 
मेरी तन्हाई ने दी ये ताकत थी मुझको 
आज अकेले रहने से डर लगता है 
मैं इस कदर खुद को मिटा गया ...
खबर ही नहीं ...
खबर ही नहीं ...


Rate this content
Log in