खामोशी
खामोशी
खुशियों का दिन, अचानक अंधेरा, चीखें गूंजीं, टूटा है सवेरा।
आंसू पोंछता आया है बेटा, ममता का सागर, दुख का सेहरा।
पीट के बदन पे, दाग़ लिए खड़े, उसको चूमती माँ, ये कैसा प्रेम ये बंधे?
क्यों सहती है माँ ये अत्याचार, क्या मारपीट है, घर का संस्कार?
कानून का सहारा, कुछ लेती गलत रास्ता, कुछ सह लेतीं हैं, ये कैसी व्यथा ये कैसा फाँसा?
परिवार, माँ-बाप का दायित्व निभाती, क्या मैं नहीं हूँ, तेरा अपना साथी?
तेरी खामोशी, गलत राह बताती, क्या बेहतर न होगा, उससे अलग पाती?
कमा सकती है माँ, खुद की ज़िंदगी ख़ातिर, समाज की परवाह ना कर, जी ले ज़िंदगी भर।
खुद के लिए जियो, दूसरों को खुश मत करो, ये आज़ादी है माँ, नया रास्ता चुनो।
