“कौन कहता है मेरी कोई सहेली.
“कौन कहता है मेरी कोई सहेली.
जैसे तुम्हारी आंखें मुझसे कहना चाह रही हो,
मां तू अब अकेली नहीं है कौन कहता है
तेरी कोई सहेली नहीं है
सब तुम्हें अपनी तकलीफ बताते,
कई बार तुम ही तकलीफ हो ये भी कह जाते,
तुम मन ही मन बहुत रोती,
खुद को बहुत कोसती,
पर मां अब मैं तुम्हारे गम बाटूंगी,
तुम रोओगी, तो मैं भी रात जाग कर काटूंगी
कभी में तुझे सताऊंगी, खाने के लिए खूब भगाऊंगी,
पर मां मेरा वादा है, ये दोस्ती में अंत तक निभाऊंगी
तुम्हें भी मुझसे एक वादा करना होगा,
ये एक तरफा दोस्ती नहीं है, ये विश्वास दिलाना होगा
मैं एक लड़की हूं इसलिए मेरी इच्छाएं दबेगी नहीं,
मुझे भी आसमान को छूना है, मेरी पतंग कटेगी नहीं
ये समाज तुम्हें मुझे पढ़ाने से रोकेगा,
कैसी मां हो घर के काम सिखाओ, ये कह के टोकेगा
पर मां तुम खड़ी रहना, मेरे लिए अड़ी रहना
हमने जैसे एक दूसरे से आंखों आंखों में ये वादा कर लिया,
दिल ही दिल में इरादा कर लिया
अब मुझ में भी जीने का नया जोश आया,
खुद को संभालूंगी, ये होश आया
मैं भी अब अकेली नहीं, कौन कहता है मेरी कोई सहेली नहीं
वो कहते है न माँ शब्द अपने आप में परिपूर्ण है दुनिया में हम चाहे कितने भी रिश्ते से क्यू न बंधे हुए है लेकिन माँ के हमारा जीवन अधूरा होता है हर रिश्ते को आप से कुछ पाने की आस रहता है, लेकिन माँ का पुत्र के बीच एक ऐसा रिश्ता है जो एक माँ अपने संतान को जीवन पर्यन्त सिर्फ देना जानती है माँ भूखी सो सकती है लेकिन कभी भी अपने संतान को भूखे पेट सोना सपने में भी नहीं देखना चाहती है माँ तो हर वक्त अपने संतान के कल्याण की बात सोचती है की किस प्रकार उसकी संतान आगे बढ़े और जग में नाम करें.