“कैसा मज़हब कैसा जेहाद”
“कैसा मज़हब कैसा जेहाद”
कैसा मज़हब कैसा जेहाद, ये तो केवल अपराधी हैं
इन्साँ कहना ठीक नहीं, ये केवल आतंकवादी हैं
ये दहशत ये मारकाट, अब और नहीं सहेंगे हम
वो अपना हो या बेगाना, उठ कर वार करेंगे हम
हो जाये सारा विश्व एक, इन सबका काम तमाम करो
अंजाम हुआ लादेन का जैसा, इनका भी वैसा अंजाम करो
पेशावर हो या मुम्बई, दोनों में कोई भेद नहीं
निर्दोषों को मार रहे हैं, फिर भी इनको खेद नहीं
हत्यारों को मारेंगे, हम सबने ये ठाना है
मासूमों के हत्यारों को, फाँसी पर लटकाना है
जानें ली हैं जिन बच्चों की, वो सब तो नादान थे
क्या होना था और हुआ क्या, इस सबसे अनजान थे
उन हत्यारों को जीने का, अब कोई अधिकार नहीं
कोई माफ़ी कोई भी तर्क, अब हमको स्वीकार नहीं
जिन लोगों ने ह्त्या की है, बच्चों की पाकिस्तान में
सात जन्म तक बच्चे न हों, उनके खानदान में
