काफी हैं
काफी हैं
श्रृंगार की तुझको जरुरत क्या?
रुप की रंगत काफी है
आँखें रचने की जरुरत नहीं
आरे का काजल काफी हैं
चटक मटक होंठों की जरुरत नहीं
खुद उनकी लालिमा काफी हैं
नथुनी, झुमको की जरुरत नहीं
नीम की डाली काफी हैं
तन तुझको गढ़ने की जरुरत नहीं
उरोजो की कसावट ही काफी हैं
नग-भूषण की जरुरत नहीं
बागों के फूल ही काफी हैं
अंगरखे की तुझको जरूरत नहीं
चीर(धोती) का टुकड़ा काफी हैं
आरसी, कंगन की जरुरत नहीं
काँच की चूड़ी काफी हैं
हिना की तुझको जरुरत नहीं
हाथों की रेखा काफी हैं
करधनीं, पायल की जरुरत नहीं
काला डोरा ही काफी हैं
अनुलेपन की तुझको जरुरत नहीं
खुद काया का रंग ही काफी हैं
देवों की तुझको जरुरत नही
ये मंजुल मूरत काफी हैं !....
