जोकर
जोकर
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हर इन्सान में
छुपा है एक जोकर
छुपाता है जो अपने दुख को
अन्तरतम की गहरी से गहरी
परत के भीतर
उसका चेहरे का मुखौटा
शामिल होता
दर्शक की ख़ुशी के उत्सव में
बिना इस सत्य को जाने
कि दर्शक की ख़ुशी भी
एक मुखौटा
और वह दर्शक
शामिल है
जोकर के मुखौटे को ही
ख़ुशी का प्रतिरूप समझ
उसके खेल के आनन्द में!
दोनों हैं-
एक स्तर पर।
और इस विडम्बना में भी
साथ-साथ
कि वहाँ
नहीं है कोई निर्देशक
जिसके ‘ऐक्शन’ के संकेत पर
उनमें हो उठे हरक़त
कहते हुऐ कि
‘मेरा नाम जोकर’!
